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रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया - अर्श मलसियानी कविता - Darsaal

रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया

रहगुज़र रहगुज़र से पूछ लिया

तेरा घर सब के घर से पूछ लिया

जो ज़बाँ से न कर सके वो बयाँ

हम ने उन की नज़र से पूछ लिया

गुमरही और बढ़ गई अपनी

रास्ता राहबर से पूछ लिया

जब ज़मीं ने दिया न तेरा पता

हम ने शम्स ओ क़मर से पूछ लिया

तुम न आओ न आएगी रौनक़

हम ने दीवार-ओ-दर से पूछ लिया

मेरी चुप को वो क्या समझते हैं

राज़ जब चश्म-ए-तर से पूछ लिया

इल्म का राज़ 'अर्श' बस ये है

कुछ इधर कुछ उधर से पूछ लिया

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