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लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा - अर्श मलसियानी कविता - Darsaal

लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा

लुत्फ़ ही लुत्फ़ है जो कुछ है इनायत के सिवा

है मोहब्बत से सिवा जो है मोहब्बत के सिवा

दोस्तों के करम-ए-ख़ास से बचने के लिए

कोई गोशा न मिला गोशा-ए-उज़्लत के सिवा

मुझ से शिकवा भी जो करते हैं तो ये कहते हैं

कुछ भी आता ही नहीं तुझ को शिकायत के सिवा

आप के ख़त को मैं किस बात का ग़म्माज़ कहूँ

इस में सब कुछ है बस इक हर्फ़-ए-मोहब्बत के सिवा

जिस क़दर चाहो गुनाहों पे हँसो ख़ूब हँसो

ये इलाज और भी है अश्क-ए-निदामत के सिवा

वो जो कहते हैं कि है फ़हम ओ फ़िरासत हम से

ऐसे लोगों में सभी कुछ है फ़िरासत के सिवा

इस नई बात को भी 'अर्श' कभी सोचा है

आज कल शेर में जिद्दत है तो जिद्दत के सिवा

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