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जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं - अरमान नज्मी कविता - Darsaal

जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं

जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं

हम हैं वो लोग कि जागे हैं न सोए हुए हैं

अपने अंजाम का देखेगा तमाशा कभी वो

जीते-जी हम तो अभी से उसे रोए हुए हैं

दाग़ मिटता नहीं कुछ और नुमायाँ हुआ है

अपने हाथ आप ने किस चीज़ से धोए हुए हैं

कुछ समझ में नहीं आता ये मुकाफ़ात-ए-अमल

काटते क्यूँ नहीं जो आप ने बोए हुए हैं

रूह अपनी रही है क़ुर्ब-ए-बदन से सरशार

हम फ़रिश्ते नहीं दामन को भिगोए हुए हैं

साँस लेने को भी अब इन की तरफ़ देखता हूँ

नोक-ए-नश्तर जो रग-ए-जाँ में चुभोए हुए हैं

क्या मिला उन से हमें ख़ाक नदामत के सिवा

हम भी किन ख़्वाबों की ताबीर को ढोए हुए हैं

इतने नादाँ भी नहीं हम कि समझ भी न सकें

आप लहजे में जो शीरीनी समोए हुए हैं

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