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गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था - अरमान नज्मी कविता - Darsaal

गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था

गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था

वो शाम ढलने से पहले सदा तो देता था

हुजूम-ए-कार में पल भर भी इक बहाने से

वो अपने क़ुर्ब का जादू जगा तो देता था

शरीक-ए-राह था वो हम-सफ़र न था फिर भी

क़दम क़दम पे मुझे हौसला तो देता था

मुझी को मिलती न थी फ़ुर्सत-ए-पज़ीराई

वो अपने सच का मुझे आइना तो देता था

वो चाँद और किसी आसमाँ का था लेकिन

उफ़ुक़ उफ़ुक़ को मिरे जगमगा तो देता था

मैं उस की आँच में तप कर न हो सका कुंदन

वो अपने शोला-ए-जाँ की हवा तो देता था

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