Ghazals of Arman Najmi
नाम | अरमान नज्मी |
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अंग्रेज़ी नाम | Arman Najmi |
ताज-ए-ज़र्रीं न कोई मसनद-ए-शाही माँगूँ
तह-ए-अफ़्लाक ही सब कुछ नहीं है
पिछली रफ़ाक़तों का न इतना मलाल कर
निगाह-ए-तिश्ना से हैरत का बाब देखते हैं
नज़र के सामने सहरा-ए-बे-पनाही है
न हर्फ़-ए-शौक़ न तर्ज़-ए-बयाँ से आती है
मैं लिख कर हो सकूँगा सुर्ख़-रू क्या
कभी तो आ के मिलो मेरा हाल तो पूछो
जो गुम-गश्ता है उस की ज़ात क्या है
जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं
गुज़रते दिन के दुखों का पता तो देता था
गिरते उभरते डूबते धारे से कट गया
घनी आबादियों की बे-अमानी का तमाशा कर
इक बे-निशान हर्फ़-ए-सदा की तरफ़ न देख
दिमाग़-ओ-दिल पे हो क्या असर अँधेरे का
बुझी नहीं अभी ये प्यास भी ग़नीमत है
भूल गया ख़ुश्की में रवानी
ब-ज़ाहिर ये वही मिलने बिछड़ने की हिकायत है
अपनी सच्चाई का आज़ार जो पाले हुए हैं