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जब सितारों की रिदा काँधे से सरकाती है रात - अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ कविता - Darsaal

जब सितारों की रिदा काँधे से सरकाती है रात

जब सितारों की रिदा काँधे से सरकाती है रात

चाँद के सीने से लग कर नूर बन जाती है रात

ख़ुद तड़प कर किस क़दर मुझ को भी तड़पाती है रात

अश्क-ए-शबनम जब मिरी हालत पे बरसाती है रात

ख़ून-ए-दिल दे कर उफ़ुक़ रंगीन कर जाती है रात

रौशनी होने से पहले क़त्ल हो जाती है रात

सुब्ह-ए-नौ से किस लिए इस दर्जा घबराती है रात

देख कर ख़ुर्शीद को जाने किधर जाती है रात

तीरगी-ए-हिज्र को हद से बढ़ा जाती है रात

आप के आने से पहले क्यूँ चली आती है रात

मैं नज़र बन जाऊँ तो तस्वीर बन जाती है रात

उन की यादों के दिए की लौ बढ़ा जाती है रात

दिन गुज़र जाता है 'अफ़्शाँ' महफ़िल-ए-अहबाब में

क़स्र-ए-तन्हाई में चुपके से चली आती है रात

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