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तू ज़मीं पर है कहकशाँ जैसा - आरिफ़ शफ़ीक़ कविता - Darsaal

तू ज़मीं पर है कहकशाँ जैसा

तू ज़मीं पर है कहकशाँ जैसा

मैं किसी क़ब्र के निशाँ जैसा

मैं ने हर हाल में किया है शुक्र

उस ने रक्खा मुझे जहाँ जैसा

हो गई वो बहन भी अब रुख़्सत

प्यार जिस ने दिया था माँ जैसा

फ़ासला क्यूँ दिलों में आया है

घर के आँगन के दरमियाँ जैसा

मेरे दिल को मिला न लफ़्ज़ कोई

मेरे अश्कों के तर्जुमाँ जैसा

मेरे इक शेर में समाया है

कर्ब सदियों की दास्ताँ जैसा

शहर में एक मुझ को दिखला दो

तुम मिरे गाँव के जवाँ जैसा

झील सी इन उदास आँखों में

अक्स था नीले आसमाँ जैसा

मुझ को वैसा ख़ुदा मिला बिल्कुल

मैं ने 'आरिफ़' किया गुमाँ जैसा

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