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जो अपनी ख़्वाहिशों में तू ने कुछ कमी कर ली - आरिफ़ शफ़ीक़ कविता - Darsaal

जो अपनी ख़्वाहिशों में तू ने कुछ कमी कर ली

जो अपनी ख़्वाहिशों में तू ने कुछ कमी कर ली

तो फिर ये जान कि तू ने पयम्बरी कर ली

तुझे मैं ज़िंदगी अपनी समझ रहा था मगर

तिरे बग़ैर बसर मैं ने ज़िंदगी कर ली

पहुँच गया हूँ मैं मंज़िल पे गर्दिश-ए-दौराँ

ठहर भी जा कि बहुत तू ने रहबरी कर ली

जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी

मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली

जो सच्ची बात थी वो मैं ने बरमला कह दी

यूँ अपने दोस्तों से मैं ने दुश्मनी कर ली

मशीनी अहद में एहसास-ए-ज़िंदगी बन कर

दुखी दिलों के लिए मैं ने शाएरी कर ली

ग़रीब-ए-शहर तो फ़ाक़े से मर गया 'आरिफ़'

अमीर-ए-शहर ने हीरे से ख़ुद-कुशी कर ली

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