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वो मेरे शहर में आया हुआ है - आरिफ़ इशतियाक़ कविता - Darsaal

वो मेरे शहर में आया हुआ है

वो मेरे शहर में आया हुआ है

कड़कती धूप में साया हुआ है

तुम्हारे प्यार में टूटा हुआ दिल

किसी के हुस्न पे आया हुआ है

दिल-ए-बर्बाद को तेरे सबब से

नई उल्फ़त में उलझाया हुआ है

मोहब्बत ने मिरे से तुंद-ख़ू को

सर-ए-बाज़ार खिंचवाया हुआ है

मुझे मिलने को उस ने तंग कुर्ता

ब-तौर-ए-ख़ास सिलवाया हुआ है

नदामत सख़्त है पर है ख़ुशी भी

उसे ख़ल्वत में बुलवाया हुआ है

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