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तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम - आरिफ़ इशतियाक़ कविता - Darsaal

तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम

तो मिरी ज़िंदगी बनोगी तुम

मर गया मैं तो क्या रहोगी तुम

नहीं आदत कोई भली तुम में

मुझे ज़ाहिर है क्यूँ गिनोगी तुम

वो जो ज़ोहरा है, है मिरी देवी

जान जल जल के जल मरोगी तुम

क्या सुलगता हूँ क्या दहकता हूँ

अब कहो! मुझ से कब मिलोगी तुम

मिरी आदत है काट खाने की

मिरे बोसों को क्या सहोगी तुम

मैं जो हूँ मैं हूँ सब नहीं हूँ मैं

वो जो वो सब जिन्हें पढ़ोगी तुम

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