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मुझे मुझ से मिलाती जा रही है - आरिफ़ इमाम कविता - Darsaal

मुझे मुझ से मिलाती जा रही है

मुझे मुझ से मिलाती जा रही है

फ़क़ीरी रास आती जा रही है

ये मिट्टी मेरे ख़ाल-ओ-ख़द चुरा कर

तिरा चेहरा बनाती जा रही है

ये किस की याद है जो मेरे दिल में

मुसल्ले से बिछाती जा रही है

अजब शय है सुख़न की सर-बुलंदी

मिरे सर को झुकाती जा रही है

जो मस्ती रक़्स में रखती थी मुझ को

वो सज्दों में रुलाती जा रही है

लहू बहने लगा है एड़ियों तक

इबादत रंग लाती जा रही है

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