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अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं - आरिफ़ इमाम कविता - Darsaal

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं

उस गली में बिखर रहा हूँ मैं

जितना जितना झुका रहा हूँ सर

उतना उतना उभर रहा हूँ मैं

इक सहीफ़ा हूँ आसमानों का

और ज़मीं पर उतर रहा हूँ मैं

गर्दिश-ए-वक़्त रोकनी है मुझे

इस लिए रक़्स कर रहा हूँ मैं

क़ैस के भी क़दम नहीं हैं जहाँ

उस जगह से गुज़र रहा हूँ मैं

पूछ लो मुझ से आसमान के राज़

कुछ दिनों तक उधर रहा हूँ मैं

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