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ज़हराब-ए-तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिए - आरिफ़ अंसारी कविता - Darsaal

ज़हराब-ए-तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिए

ज़हराब-ए-तिश्नगी का मज़ा हम से पूछिए

गुज़री हुई सदी का मज़ा हम से पूछिए

इक पल ख़याल-ए-यार में हम मुंहमिक रहे

इक पल में इक सदी का मज़ा हम से पूछिए

शोहरत की बे-ख़ुदी का मज़ा आप जानिए

इज़्ज़त की ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

कैफ़-ओ-नशात जिस से मिला हम को बारहा

इस कर्ब-ए-आगही का मज़ा हम से पूछिए

फ़िक्र-ए-जहाँ है और न लुटने का ख़ौफ़ है

क़ल्लाश ज़िंदगी का मज़ा हम से पूछिए

फ़िक्र-ए-सुख़न में हम ने ज़माने की सैर की

'आरिफ़' सुख़नवरी का मज़ा हम से पूछिए

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