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दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया - आरिफ़ अंसारी कविता - Darsaal

दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया

दिल क्या किसी की बात से अंदर से कट गया

तितली का राब्ता क्यूँ गुल-ए-तर से कट गया

दो-चार गाम का ही सफ़र रह गया था बस

इस वक़्त मेरा क़ाफ़िला रहबर से कट गया

मौसम के सर्द-ओ-गर्म का जल पर असर न था

वो संग-दिल भी शेर-ए-सुख़नवर से कट गया

सफ़ में मुख़ालिफ़ों की मैं समझा था ग़ैर हैं

देखा जो अपने लोगों को अंदर से कट गया

ख़ैरात ख़ूब करता है जब लोग साथ हों

तन्हा है वो अभी तो गदागर से कट गया

जब तक उरूज था तो ज़माने में धूम थी

जूँ ही ज़वाल आया वो मंज़र से कट गया

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