Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_7c8666ae1e42bdf82a3e19ac0b3733c7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के - आरिफ़ अब्दुल मतीन कविता - Darsaal

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

जो उभरे वक़्त के साँचे में ढल के

वो डूबे एक आलम को बदल के

ग़म-ए-मंज़िल तुझे शायद ख़बर हो

यहाँ पहुँचे हैं कितने कोस चल के

अब उन के पास आँसू हैं न आहें

जो ग़म की आग से निकले हैं जल के

ज़मीं की एक ही जुम्बिश बहुत है

ज़मीं से आ मलेंगे ये महल के

हमीं ने रास्तों की ख़ाक छानी

हमीं आए हैं तेरे पास चल के

इन आँखों ने ये अन-होनी भी देखी

नसीम-ए-सुब्ह गुज़री गुल मसल के

ज़माना क्यूँ तुझी पर मर रहा है

बहाने जब कि लाखों हैं अजल के

तिरी गुफ़्तार पर आलिम फ़िदा है

तिरी बातों में तेवर हैं ग़ज़ल के

सहर होने को है 'आरिफ़' ख़ुदारा

घड़ी भर सो रहो पहलू बदल के

(922) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke In Hindi By Famous Poet Arif Abdul Mateen. Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke is written by Arif Abdul Mateen. Complete Poem Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke in Hindi by Arif Abdul Mateen. Download free Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke Poem for Youth in PDF. Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke is a Poem on Inspiration for young students. Share Jo Ubhre Waqt Ke Sanche Mein Dhal Ke with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.