छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले
छुपाए दिल में हम अक्सर तिरी तलब भी चले
कभी कभी तिरे हमराह बे-सबब भी चले
नुमूद-ए-गुल के करिश्मे सदा जिलौ में रहे
नसीम बन के चले हम चमन में जब भी चले
जलाओ ख़ून-ए-शहीदाँ से इर्तिक़ा के चराग़
ये रस्म चलती रही है ये रस्म अब भी चले
सुना है जादा-नवर्दान-ए-सुब्ह के हमराह
ब-फ़ैज़-ए-वक़्त कई रह-रवान-ए-शब भी चले
है शोर-ए-शबनम-ए-आसूदगी के दोश-ब-दोश
गुल आज ले के कहीं शोला-ए-ग़ज़ब भी चले
किसी का हुक्म-ए-ज़बाँ-बंदी-ए-जुनूँ भी चला
किसी के क़िस्से सुख़न बन के ज़ेर-ए-लब भी चले
हमीं ने साग़र-ए-ग़म मुंतख़ब किया 'आरिफ़'
वगर्ना बज़्म में कुछ साग़र-ए-तरब भी चले
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