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किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है - आराधना प्रसाद कविता - Darsaal

किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है

किसी परिंदे ने उड़ने का मन बनाया है

वो कोई और नहीं मेरा ही तो साया है

ज़मीं की मुट्ठी में जैसे हो आसमान कोई

ग़ज़ब का रेशमी एहसास कोई लाया है

गुलों में शोख़ गुलाबी तुम्हीं ने रंग भरे

चले भी आओ के गुलशन ने अब बुलाया है

ये मेरा गाँव हर इक रोज़ यूँ दमकने लगा

के जुगनुओं ने यहाँ आशियाँ बनाया है

नए से ख़्वाब चुरा लूँ हसीन लम्हों से

यूँ शबनमी सी किसी रात ने सुलाया है

भरा भरा सा ही रहता है ये मिरा मन अब

मिज़ाज वक़्त ने तुझ से ये ख़ूब पाया है

मिलो कभी भी जो फ़ुर्सत में तो ये पूछेंगे

यूँ मेरे चाँद को मुझ से ही क्यूँ चुराया है

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