ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी

ज़ीस्त करना दर-ए-इदराक से बाहर है अभी

ये सितारा मिरे अफ़्लाक से बाहर है अभी

ढूँडते हैं उसी नश्शे को सभी बादा-गुसार

एक नश्शा जो रग-ए-ताक से बाहर है अभी

एक ही लम्हे में तस्ख़ीर करेगी उसे आँख

पर वो लम्हा मिरे अफ़्लाक से बाहर है अभी

कुछ मिरे चाक-ए-गरेबाँ को ख़बर हो शायद

एक गर्दिश जो मिरे चाक से बाहर है अभी

बस वही अश्क मिरा हासिल-ए-गिर्या है 'अक़ील'

जो मिरे दीदा-ए-नमनाक से बाहर है अभी

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Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi In Hindi By Famous Poet Aqeel Abbas Jafri. Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi is written by Aqeel Abbas Jafri. Complete Poem Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi in Hindi by Aqeel Abbas Jafri. Download free Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi Poem for Youth in PDF. Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi is a Poem on Inspiration for young students. Share Zist Karna Dar-e-idrak Se Bahar Hai Abhi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.