डुबोए देता है ख़ुद-आगही का बार मुझे

डुबोए देता है ख़ुद-आगही का बार मुझे

मैं ढलता नश्शा हूँ मौज-ए-तरब उभार मुझे

ऐ रूह-ए-अस्र में तेरा हूँ तेरा हिस्सा हूँ

ख़ुद अपना ख़्वाब समझ कर ज़रा सँवार मुझे

बिखर के सब में अबस इंतिज़ार है अपना

जला के ख़ाक कर ऐ शम-ए-इंतिज़ार मुझे

सदा-ए-रफ़्ता सही लौट कर मैं आऊँगा

फ़राज़-ए-ख़्वाब से ऐ ज़िंदगी पुकार मुझे

अज़ाब ये है कि मुझे जैसे फूल और भी हैं

सलीब-ए-शाख़ से दस्त-ए-ख़िज़ाँ उतार मुझे

ग़रीब-ए-शहर नवा ही सही मगर यारो

बहुत है अपनी ही आवाज़ का दयार मुझे

(760) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe In Hindi By Famous Poet Anwar Siddiqui. Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe is written by Anwar Siddiqui. Complete Poem Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe in Hindi by Anwar Siddiqui. Download free Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe Poem for Youth in PDF. Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe is a Poem on Inspiration for young students. Share Duboe Deta Hai KHud-agahi Ka Bar Mujhe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.