ज़माने के झमेलों से मुझे क्या
मिरी जाँ! मैं तुम्हारा आदमी हूँ
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जनाब के रुख़-ए-रौशन की दीद हो जाती
'शुऊर' ख़ुद को ज़हीन आदमी समझते हैं
बहुत इरादा किया कोई काम करने का
हवस बला की मोहब्बत हमें बला की है
'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती
यक़ीनन सर छुपाने की ग़रज़ से
सिर्फ़ उस के होंट काग़ज़ पर बना देता हूँ मैं
वो रंग रंग के छींटे पड़े कि उस के ब'अद
किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ
ऐसे देखा है कि देखा ही न हो
चले आया करो मेरी तरफ़ भी!
आवारा हूँ रैन-बसेरा कोई नहीं मेरा