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ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल - अनवर शऊर कविता - Darsaal

ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल

ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल

कुछ न कुछ तो चाहिए बाबा दवा-ए-दर्द-ए-दिल

रात को आराम से हूँ मैं न दिन को चैन से

हाए हाए वहशत-ए-दिल हाए हाए दर्द-ए-दिल

दर्द-ए-दिल ने तो हमें बेहाल कर के रख दिया

काश कोई और ग़म होता बजाए दर्द-ए-दिल

उस ने हम से ख़ैरियत पूछी तो हम चुप हो गए

कोई लफ़्ज़ों में भला कैसे बताए दर्द-ए-दिल

दो बलाएँ आज कल अपनी शरीक-ए-हाल हैं

इक बला-ए-दर्द-ए-दुनिया इक बला-ए-दर्द-ए-दिल

ज़िंदगी में हर तरह के लोग मिलते हैं 'शुऊर'

आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल ना-आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल

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