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'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती - अनवर शऊर कविता - Darsaal

'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती

'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती

तो आज फ़िक्र न होती शिफ़ा हुई होती

मुरव्वतन भी अगर आप आ गए होते

तमानिय्यत हमें बे-इंतिहा हुई होती

न जाने कितने बरस हो गए फ़ुग़ाँ करते

कभी तो दाद-रसी ऐ ख़ुदा हुई होती

न था नसीब में दिल की मुराद बर आना

तो काश सब्र की आदत अता हुई होती

हमारा हाल तुम्हारी समझ में आ जाता

अगर किसी से मोहब्बत ज़रा हुई होती

हम अपने-आप से रहते न बे-ख़बर तो भला

हमारी सूरत-ए-हालात क्या हुई होती

'शुऊर' आप की आमद से लाख बेहतर था

ग़रीब-ख़ाने पे नाज़िल बला हुई होती

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