'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती
'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती
तो आज फ़िक्र न होती शिफ़ा हुई होती
मुरव्वतन भी अगर आप आ गए होते
तमानिय्यत हमें बे-इंतिहा हुई होती
न जाने कितने बरस हो गए फ़ुग़ाँ करते
कभी तो दाद-रसी ऐ ख़ुदा हुई होती
न था नसीब में दिल की मुराद बर आना
तो काश सब्र की आदत अता हुई होती
हमारा हाल तुम्हारी समझ में आ जाता
अगर किसी से मोहब्बत ज़रा हुई होती
हम अपने-आप से रहते न बे-ख़बर तो भला
हमारी सूरत-ए-हालात क्या हुई होती
'शुऊर' आप की आमद से लाख बेहतर था
ग़रीब-ख़ाने पे नाज़िल बला हुई होती
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