रही रात उन से मुलाक़ात कम
रही रात उन से मुलाक़ात कम
मुदारात ख़ासी हुई बात कम
तिरी याद इतना बड़ा काम है
कि मालूम होते हैं दिन रात कम
कहीं दिल बहलता नहीं शहर में
न बाज़ार कम हैं न बाग़ात कम
मोहब्बत में होती हैं इंसान को
शिकस्तें ज़ियादा फ़ुतूहात कम
सँभाले हुए है ये शोबा भी दिल
अब आँखों से होती है बरसात कम
दिमाग़ों की पर्वाज़ मालूम है
सवालात वाफ़िर जवाबात कम
बहुत सों से अच्छा हूँ फिर भी 'शुऊर'
दिगर-गूँ नहीं मेरे हालात कम
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