मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
मिरी हयात है बस रात के अँधेरे तक
मुझे हवा से बचाए रखो सवेरे तक
दुकान-ए-दिल में नवादिर सजे हुए हैं मगर
ये वो जगह है कि आते नहीं लुटेरे तक
मुझे क़ुबूल हैं ये गर्दिशें तह-ए-दिल से
रहें जो सिर्फ़ तिरे बाज़ुओं के घेरे तक
सड़क पे सोए हुए आदमी को सोने दो
वो ख़्वाब में तो पहुँच जाएगा बसेरे तक
चमक-दमक में दिखाई नहीं दिए आँसू
अगरचे मैं ने ये नग राह में बिखेरे तक
कहाँ हैं अब वो मुसाफ़िर-नवाज़ बहुतेरे
उठा के ले गए ख़ाना-ब-दोश डेरे तक
थका हुआ हूँ मगर इस क़दर नहीं कि 'शुऊर'
लगा सकूँ न अब उस की गली के फेरे तक
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