क्या बे-मुरव्वती का शिकवा गिला किसी से
क्या बे-मुरव्वती का शिकवा गिला किसी से
ख़ुद हम ने कब वफ़ा की अपने सिवा किसी से
इस हाथ से वसूली उस हाथ से अदाई
पहुँचा दिया किसी को जो कुछ मिला किसी से
मालूम है हमें हम कितने पढ़े लिखे हैं
ये सुन लिया किसी से वो सुन लिया किसी से
उस दौर में कहाँ ये आज़ादी-ए-अमल थी
चोरी-छुपे हमारा था सिलसिला किसी से
सब एक दूसरे की हर बात जानते हैं
मख़्फ़ी नहीं किसी का अच्छा बुरा किसी से
तुम ही ख़ुलूस-ए-दिल से आ जाते हो 'शुऊर' अब
मिलता है कौन वर्ना बे-फ़ाएदा किसी से
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