तू भी कर ग़ौर इस कहानी पर
तू भी कर ग़ौर इस कहानी पर
जो लिखी जा रही है पानी पर
ये ज़मीं ज़र उगाएगी इक दिन
रख यक़ीं अपनी कल्बा-रानी पर
उस की बे-मेहवरी पे ग़ौर न कर
रहम खा उस की बे-ज़बानी पर
गरचे मुश्किल तलाश थी उस की
घर तिरा मिल गया निशानी पर
उन से मअनी कशीद कर अपने
नक़्श उभरे हैं जो भी पानी पर
क़ाएम 'अनवर-सदीद' ने रक्खा
इर्तिकाज़ अपनी ज़िंदगानी पर
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