दीवार पर लिखा न पढ़ो और ख़ुश रहो

दीवार पर लिखा न पढ़ो और ख़ुश रहो

कहता है जो गजर न सुनो और ख़ुश रहो

अपनाइयत का ख़्वाब तो देखो तमाम उम्र

बेगानगी का ज़हर पियो और ख़ुश रहो

काँटे जो दोस्तों ने बिखेरे हैं राह में

पलकों से अपनी आप चुनो और ख़ुश रहो

बातें तमाम उन की सुनो गोश-ए-होश से

अपनी तरफ़ से कुछ न कहो और ख़ुश रहो

वो कज-अदा हैं गर तो न शिकवा करो कभी

बेहतर है ज़हर-ए-इश्क़ पियो और ख़ुश रहो

शिकवा किया ज़माने का तो उस ने ये कहा

जिस हाल में हो ज़िंदा रहो और ख़ुश रहो

'अनवर-सदीद' हाल अगर मेहरबाँ नहीं

माज़ी को अपने याद करो और ख़ुश रहो

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