अहद-ए-हाज़िर इक मशीन और उस का कारिंदा हूँ मैं

अहद-ए-हाज़िर इक मशीन और उस का कारिंदा हूँ मैं

रेज़ा रेज़ा रूह मेरी है मगर ज़िंदा हूँ मैं

मैं हूँ वो लम्हा जो मुट्ठी में समा सकता नहीं

पल में हूँ इमरोज़-ओ-माज़ी पल में आइंदा हूँ मैं

वो जो मुझ को फेंक आए भेड़ियों के सामने

क्या गिला-शिकवा कि उन से आप शर्मिंदा हूँ मैं

मेरे लफ़्ज़ों में अगर ताब-ओ-तवानाई नहीं

ऐ ख़ुदा क्यूँ दहर में तेरा नुमाइंदा हूँ मैं

मैं जो कहता हूँ समझता ही नहीं कोई उसे

जैसे मलबे में दबी बस्ती का बाशिंदा हूँ मैं

मेरे चेहरे पर मुनक़्क़श इस तरह तारीख़ है

जैसे इक कोहना अजाइब घर का बाशिंदा हूँ मैं

ख़ाक हूँ लेकिन सरापा नूर है मेरा वजूद

इस ज़मीं पर चाँद सूरज का नुमाइंदा हूँ मैं

इस जहाँ में मैं ही मस्जूद-ए-मलाइक था 'सदीद'

इस जहाँ में आज के इंसाँ से शर्मिंदा हूँ मैं

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