आरज़ू थी ये बिखेरें अपनी किरनें सुब्ह तक

आरज़ू थी ये बिखेरें अपनी किरनें सुब्ह तक

रोते रोते बुझ गई हैं सारी शमएँ सुब्ह तक

शब की मुट्ठी में परिंदों की तरह वो सो गईं

हो गईं ज़िंदा हथेली पर लकीरें सुब्ह तक

वक़्त की गुज़री इबारत की तिलावत के लिए

रात की तन्हाइयों में आओ घूमें सुब्ह तक

दिन का सूरज उन पे लिक्खेगा अनोखे तब्सिरे

हम ने जो तालीफ़ कीं दिल पर किताबें सुब्ह तक

ज़िंदगी के रास्तों में जो कहीं गुम हो गए

ढूँडती अब उन को हैं ख़्वाबों में आँखें सुब्ह तक

आशियानों में न जब लौटे परिंदे तो 'सदीद'

दूर तक तकती रहीं शाख़ों में आँखें सुब्ह तक

(805) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak In Hindi By Famous Poet Anwar Sadeed. Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak is written by Anwar Sadeed. Complete Poem Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak in Hindi by Anwar Sadeed. Download free Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak Poem for Youth in PDF. Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak is a Poem on Inspiration for young students. Share Aarzu Thi Ye Bikheren Apni Kirnen Subh Tak with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.