Ghazals of Anwar Sabri
नाम | अनवर साबरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Anwar Sabri |
जन्म की तारीख | 1896 |
मौत की तिथि | 1985 |
जन्म स्थान | Delhi |
ज़ुल्मतों में रौशनी की जुस्तुजू करते रहो
ज़िंदगी के हसीं बहाने से
वो नीची निगाहें वो हया याद रहेगी
वक़्त जब करवटें बदलता है
उन की महफ़िल में हमेशा से यही देखा रिवाज
उम्र गुज़री है इल्तिजा करते
तसव्वुर के सहारे यूँ शब-ए-ग़म ख़त्म की मैं ने
तलख़ाबा-ए-ग़म ख़ंदा-जबीं हो के पिए जा
तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए
शब-ए-फ़िराक़ की ज़ुल्मत है ना-गवार मुझे
रहते हुए क़रीब जुदा हो गए हो तुम
निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची
न तन्हा नस्तरीन ओ नस्तरन से इश्क़ है मुझ को
न होंगे हम तो ये रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा
मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है
लब पे काँटों के है फ़रियाद-ओ-बुका मेरे बाद
कुछ अबरुओं पे बल भी हैं ख़ंदा-लबी के साथ
इश्क़ मुकम्मल ख़्वाब-ए-परेशाँ
इश्क़ में ग़म के सिवा कोई ख़ुशी देखी नहीं
इंक़िलाब-ए-सहर-ओ-शाम इलाही तौबा
हासिल-ए-ग़म यही समझते हैं
हर साँस में ख़ुद अपने न होने का गुमाँ था
दौर-ए-हाज़िर हो गया है इस क़दर कम-आश्ना
अता-ए-ग़म पे भी ख़ुश हूँ मिरी ख़ुशी क्या है