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शेर-ओ-सुख़न की उस महफ़िल में सब से छोटे हम ही थे - अनवर नदीम कविता - Darsaal

शेर-ओ-सुख़न की उस महफ़िल में सब से छोटे हम ही थे

शेर-ओ-सुख़न की उस महफ़िल में सब से छोटे हम ही थे

सब से ऊँचे मंसब वाले खोटे सिक्के हम ही थे

याद हमें है तुम भी सोचो वक़्त पड़ा जब उर्दू पर

सब थे उलझी भाषा वाले उर्दू वाले हम ही थे

दौलत शोहरत हिकमत वाले सब हैं तेरे दम के साथ

दुनिया तेरी सारी रौनक़ छोड़ के बैठे हम ही थे

टूट चुके सब रिश्ते नाते आगे पीछे राहें थीं

तेरा बन के रहने वाले मारे-बाँधे हम ही थे

दुनिया हम से लेती क्या और हम दुनिया को देते क्या

सब थे सीधे-सादे बुज़दिल आड़े-तिरछे हम ही थे

हम थे अपने आगे पीछे और नज़र में कोई न था

ऐसा सुर्मा 'अनवर' अपनी आँख में डाले हम ही थे

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