बड़े सुकून से ख़ुद अपने हम-सरों में रहे
बड़े सुकून से ख़ुद अपने हम-सरों में रहे
जब आइना-सिफ़त इंसान पत्थरों में रहे
भला वो कैसे जराएम के हाथ काटेंगे
जो सहमे सिमटे से ख़ुद अपने बिस्तरों में रहे
नफ़स नफ़स था बिखरने का सिलसिला जारी
बराए नाम ही महफ़ूज़ हम घरों में रहे
हमारी नुक्ता-रसी इस क़दर गिराँ गुज़री
कि बन के ख़ार हमेशा नज़र-वरों में रहे
सहीफ़े फ़िक्र-ओ-नज़र के जो दे गए तरतीब
वही तो शेर-ओ-सुख़न के पयम्बरों में रहे
उठाए दोश पे मस्लूब हसरतों की लाश
हम अपने शहर के ख़ूँ-बार मंज़रों में रहे
तराश कर नई तहज़ीब के सनम हम लोग
''ब-सद वक़ार ज़माने के आज़रों में रहे
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