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आज मुझे कुछ लोग मिले हैं पागल से - अनवर मीनाई कविता - Darsaal

आज मुझे कुछ लोग मिले हैं पागल से

आज मुझे कुछ लोग मिले हैं पागल से

शहर में वहशी दर आए क्या जंगल से

सारे मसाइल ला-यनहल से लगते हैं

निकलूँ कैसे सोच की गहरी दलदल से

बर्फ़-नुमा सी तारों की चंचल किरनें

छन कर निकलें रात के काले आँचल से

ज़ेहन से यूँ है फ़िक्र-ओ-नज़र का अब रिश्ता

पनघट को इक रब्त हो जैसे छागल से

याद की ख़ुशबू दिल के नगर में फैलेगी

ग़म के साए लगते हैं अब शीतल से

जिस्म-ओ-जाँ पर सन्नाटों का पहरा हो

बाज़ आया मैं अब दुनिया की हलचल से

तन्हाई का ज़हर भला क्या फैलेगा

छाए हो तुम एहसास पे मेरे बादल से

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