मगर मेरी आँखों में

मेंह बरसता है

आँगन में बूंदों की रिम-झिम में

चिड़ियाँ चहकती हुई चार-सू

घूमती हैं

छतों पर घने काले बादल

बने देवता झूमते हैं

सुतूनों से लिपटी हुई

सुर्ख़ फूलों की बेलें

बरसते हुए मेंह की बौछार में

अपना जोबन निखारे

मचलती हैं

आँगन में खुलते हुए ख़ाली कमरे

अँधेरे की बकल में सिमटे हुए

गुज़रे वक़्तों की मदिरा पिए

ऊँघते हैं

ख़मोशी

घने बादलों का अंधेरा

हवा के तड़पते हुए सर्द झोंकों में

बूंदों की रिम-झिम

ये लगता है

सदियों से ठहरा हुआ वक़्त

मौसम के नशे में बे-ख़ुद हुआ है

मगर मेरी आँखों में

सावन की गुज़री हुई रुत के लम्हे

जली घास की पत्तियाँ बन के चुभते हैं

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