कहाँ तक मुझ को ठुकराएगी दुनिया
कहाँ तक मुझ को ठुकराएगी दुनिया
कभी तो ख़ुद को समझाएगी दुनिया
मियाँ दिल से ग़लत-फ़हमी निकालो
तुम्हारे बिन भी चल जाएगी दुनिया
मुझे भी रोक ही लेगा ज़माना
तुम्हें भी याद आ जाएगी दुनिया
इसे अपना नहीं है होश 'अनवर'
तुम्हें क्या ख़ाक समझाएगी दुनिया
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