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ज़माना उफ़ ये कैसा हो रहा है - अनवर जमाल अनवर कविता - Darsaal

ज़माना उफ़ ये कैसा हो रहा है

ज़माना उफ़ ये कैसा हो रहा है

जो सीधा था वो उल्टा हो रहा है

अब अहल-ए-इल्म में तारीकियाँ हैं

जहालत में सवेरा हो रहा है

वहाँ पर ज़िंदगी कैसे बचेगी

जहाँ क़ातिल मसीहा हो रहा है

बशर का मक़्सद-ए-तख़्लीक़ देखो

उसे होना था क्या क्या हो रहा है

ये है तक़लीद-ए-मग़रिब का नतीजा

जुदा मुस्लिम से पर्दा हो रहा है

हमारी रास्त-गोई काम आई

वफ़ा होना था वा'दा हो रहा है

जमाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न का तेरे 'अनवर'

सुख़न-दानों में चर्चा हो रहा है

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