आए हैं समझाने लोग
आए हैं समझाने लोग
ग़म से हैं अन-जाने लोग
वो जो रूठे हैं तो लगे हैं
दिल मेरा तड़पाने लोग
क्यूँ छोड़ा है अपनों ने
पूछते हैं बेगाने लोग
अहल-ए-जुनूँ से ना-वाक़िफ़
बनते हैं फ़रज़ाने लोग
उन की नज़र जो उठती 'अनवर'
क्यूँ जाते मयख़ाने लोग
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