उदासी एक लड़की है
दिसम्बर की घनी रातों में
जब बादल बरसता है
लरज़ती ख़ामुशी
जब बाल खोले
कारीडोरों में सिसकती है
तो आतिश-दान के आगे
कहीं से वो दबे-पाँव
मिरे पहलू में आती है
और अपने मरमरीं हाथों से
मेरे बाल सुलझाते हुए
सरगोशियों में दर्द के क़िस्से सुनाती है
जुलाई की दो-पहरें
मम्टियों से जब उतर कर
आँगनों में फैल जाती हैं
बातों के बिस्कुट फूल जाते हैं
तो वो भी जंगली बेलों से
उठती ख़ुशबुओं से जिस्म पाती है
मिरे नज़दीक आती है
मिरी साँसों की पगडंडी पे
धीरे धीरे चलती है
मिरे अंदर उतरती है
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