सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
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थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके
नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
शर्म भी इक तरह की चोरी है