नींद का काम गरचे आना है
मेरी आँखों में पर नहीं आती
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किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
क़ामत ही लिखा हम ने सदा जा-ए-क़यामत
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
अब अपना हाल हम उन्हें तहरीर कर चुके
है भी और फिर नज़र नहीं आती