मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
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किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
शर्म भी इक तरह की चोरी है
कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
न मैं समझा न आप आए कहीं से
मोहब्बत हो तो बर्क़-ए-जिस्म-ओ-जाँ हो
'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
आँखें दिखाईं ग़ैर को मेरी ख़ता के साथ
हश्र को मानता हूँ बे-देखे