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कोई सदा न दूर तलक नक़्श-ए-पा कोई - अनवर अंजुम कविता - Darsaal

कोई सदा न दूर तलक नक़्श-ए-पा कोई

कोई सदा न दूर तलक नक़्श-ए-पा कोई

वो मोड़ है कि मिलता नहीं रास्ता कोई

हाँ दिल की धड़कनों से सदा छीन लो मगर

चुप-चाप ही जो आ के यहाँ बस गया कोई

माना कि तेरे दर पे झुकीं आ के मंज़िलें

पर हम सा भी मिला तुझे सच सच बता, कोई

दिल की ज़बाँ बहुत है कोई हो जो अहल-ए-दिल

होंटों से क्या बताए भला मुद्दआ' कोई

आँखें जो बंद कीं तो वो उभरे हैं आफ़्ताब

बाहर की धूप से न रहा वास्ता कोई

हैरान हो के दिल से ये पूछा निगाह ने

क्या वाक़ई मिला न तुझे आश्ना कोई

या आसमान तक नहीं जाती मिरी नवा

या आसमाँ पे सुनता नहीं है नवा कोई

जितने ख़याल उतने ही रंगों के दाएरे

मिलता नहीं किसी से कहीं सिलसिला कोई

उस सादा-दिल को क्या ख़बर इस ऊँच-नीच की

'अंजुम' के पास जा के बने क्या बड़ा कोई

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