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हमें भूला नहीं अफ़्साना दिल का - अनवर मोअज़्ज़म कविता - Darsaal

हमें भूला नहीं अफ़्साना दिल का

हमें भूला नहीं अफ़्साना दिल का

अभी हाथों में है पैमाना दिल का

धुआँ उठता नज़र आता है हर-सू

अभी आबाद है वीराना दिल का

जहाँ बिखरी है अब ख़ाकिस्तर-ए-दिल

उसी जा था कभी काशाना दिल का

अभी तक याद हैं वो दिन कि जब था

हर इक आवारा ग़म दीवाना दिल का

वो उम्मीदों का इक हल्का तबस्सुम

धड़क उठना वो बेताबाना दिल का

किसी आँसू की ग़म होती सदा पर

लरज़ना डूबना घबराना दिल का

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-जाँ

हर इक मंज़िल पे था नज़राना दिल का

खिले जाते थे गुल हर हर क़दम पर

कहीं भी क़ाफ़िला ठहरा न दिल का

तिलिस्म-ए-रंग-ओ-बू था टूटने तक

ठिकाना फिर न था गुल का न दिल का

उधर अरमाँ इधर एहसास-ए-हिरमाँ

छुटा किस मोड़ पर याराना दिल का

हमें बादा-कश-ए-दर्द-ए-तमन्ना

हमीं पर बंद है मय-ख़ाना दिल का

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