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सितम सहने की तय्यारी भी कोई चीज़ होती है - अनुभव गुप्ता कविता - Darsaal

सितम सहने की तय्यारी भी कोई चीज़ होती है

सितम सहने की तय्यारी भी कोई चीज़ होती है

मोहब्बत में वफ़ादारी भी कोई चीज़ होती है

बहुत हम ख़ुद-ग़रज़ थे जब मोहब्बत की तो ये जाना

कि अपनी जान से प्यारी भी कोई चीज़ होती है

ज़रूरी तो नहीं हर बात होंठों से कही जाए

निगाहों की अदाकारी भी कोई चीज़ होती है

अगर आँखों से बह जाएँ तो हो जाता है दिल हल्का

बदन में अश्क से भारी भी कोई चीज़ होती है

तक़ाज़े उस से हम ही क्यूँ करें हर रोज़ मिलने के

हमारी अपनी ख़ुद्दारी भी कोई चीज़ होती है

हमारे ख़त जहाँ पढ़ते हो यूँ ही डाल देते हो

अरे कमरे में अलमारी भी कोई चीज़ होती है

तरफ़-दारी तुम्हें आती है अपने घर के लोगों की

मियाँ मेरी तरफ़-दारी भी कोई चीज़ होती है

अयादत के बहाने मेरे घर वो रोज़ आते हैं

मोहब्बत वालों बीमारी भी कोई चीज़ होती है

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