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जुर्म ठहरा हाल से आगे का नक़्शा देखना - अनसर अली अनसर कविता - Darsaal

जुर्म ठहरा हाल से आगे का नक़्शा देखना

जुर्म ठहरा हाल से आगे का नक़्शा देखना

ताज़गी की आस रखना और सब्ज़ा देखना

आरज़ू करना चमन-ज़ारों की सब्ज़ा-ज़ार की

और ता-हद्द-ए-नज़र सहरा ही सहरा देखना

अज़्म ये रखना कि गहराई का सीना चीर दें

और अपने आप को साहिल पे तन्हा देखना

धूप की बारिश में रहना प्यास की लहरों के साथ

हर सराब-ए-दश्त को तस्वीर-ए-दरिया देखना

देखने वालों से कोई हर्फ़-ए-मंज़र क्या कहे

आँख की तक़दीर में लिख्खा है क्या क्या देखना

ये अलामत कौन सी है किस से पूछूँ ऐ हवा

पहली रुत में हर शजर पर ज़र्द पत्ता देखना

कौन बतलाएगा 'अनसर' ऐसी बातों का जवाज़

चाँदनी में बादबाँ पर अक्स-ए-दरिया देखना

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