मेरी बे-लिबासी तुम्हारा पहनावा नहीं
शश शोर मत करो
ज़मीन की आँख खुल जाएगी
मैं कोई राज़ नहीं
जिसे तुम फ़ाश कर दोगे
ख़्वाहिशों के गले घोंट कर
कत्बों पर मेरे ख़्वाब लिखते हो
ताबीर के लालच में
मुझे तो ख़्वाब मत बताओ
मैं जितना टूट सकता था, टूट चुका
क्या तुम मेरे चूरे से
अपनी आँखों की केंचुली रंगाना चाहते हो
मेरी बे-लिबासी तुम्हारा पहनावा तो नहीं!
मेरी ख़ामोशी पर
तुम्हारी आवाज़ का कफ़न कम पड़ रहा है!
तो चिल्लाते क्यूँ हो?
जानते नहीं?
शहर पहले ही मेरी तोहमत से गूँज रहा है!!!
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