काश
तुम्हारे चेहरे पर
सिर्फ़ दो आँखें मेरी आश्ना हैं
जो मुझ से हम-कलाम रहती हैं
मैं तुम्हें अपनी तमाम हिस्सियात की यकसूई से मिला हूँ
तुम्हारा जिस्म मेरी पोरों के लिए अजनबी सही
लेकिन फिर भी
तुम्हारी ख़ुश्बू में लिपटा हुआ तुम्हारा लम्स
मुझे बासी नहीं होने देता
कनखियों से देखते हुए सोचता हूँ
तुम्हें जी भर कर देखने से भी
आँखें भूकी रह जाती हैं!
ऐ मेरे बे-बहा!
काश मैं हर सम्त से
हज़ार आँखों से तुम्हें देखता
लाखों मसामों से तुम्हारे लम्स चुनता
और तुम्हारे दोनों होंटों को
अपने पूरे बदन से चूम सकता!
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