एक साकित रात का अज़ाब
मिरे बेडरूम में ज़िरो के बल्ब की...
लहू-रंग रौशनी सहमी हुई है
लिहाफ़ ओढ़े बदन टूटे पड़े हैं
सिरहाने जागते हैं नर्म बोसे
दहकती हैं ख़ुमार-आलूद आँखें
महकती हैं, उखड़ती गर्म साँसें
मगर साँसों में दिल अटके हुए हैं
लहू-रंग रौशनी सहमी हुई है
मैं कच्ची नींद से जागा हुआ हूँ
वो कच्ची उम्र की टूटी हुई है
(836) Peoples Rate This