मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी
जो खुल गई कभी मुझ पर मुनाफ़िक़त अपनी
मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा
मुझे पसंद नहीं है मुदाख़लत अपनी
मैं शर्मसार हुआ अपने आप से फिर भी
क़ुबूल की ही नहीं मैं ने माज़रत अपनी
ज़माने से तो मिरा कुछ गिला नहीं बनता
कि मुझ से मेरा तअ'ल्लुक़ था मअ'रिफ़त अपनी
ख़बर नहीं अभी दुनिया को मेरे सानेहे की
सो अपने आप से करता हूँ ताज़ियत अपनी
(1759) Peoples Rate This