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काग़ज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया - अंजुम सलीमी कविता - Darsaal

काग़ज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया

काग़ज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया

इक और मर्तबे पे मुझे रख दिया गया

इक बे-बदन का अक्स बनाया गया हूँ मैं

बे-आब आईने पे मुझे रख दिया गया

कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की

कुछ यूँ भी फ़ासले पे मुझे रख दिया गया

मुँह-माँगे दाम दे के ख़रीदा और उस के बाद

इक ख़ास ज़ाविए पे मुझे रख दिया गया

कल रात मुझ को चोरी किया जा रहा था यार

और मेरे जागने पे मुझे रख दिया गया

अच्छा भला पड़ा था मैं अपने वजूद में

दुनिया के रास्ते पे मुझे रख दिया गया

पहले तो मेरी मिट्टी से मुझ को किया चराग़

फिर मेरे मक़बरे पे मुझे रख दिया गया

'अंजुम' हवा के ज़ोर पे जाना है उस तरफ़

पानी के बुलबुले पे मुझे रख दिया गया

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